यह वार्षिक अध्ययन मार्चिंग शीप की रिसर्च और एनालिटिक्स इकाई ने किया। इसमें विनिर्माण, स्टील, बैंकिंग-बीमा (बीएफएसआई), फार्मा, एफएमसीजी, इंफ्रास्ट्रक्चर और आईटी सहित 30 क्षेत्रों की 840 सूचीबद्ध कंपनियों का विश्लेषण किया गया। हालांकि, अध्ययन में यह भी पता चला कि भारत का कॉर्पोरेट क्षेत्र अभी भी वास्तविक समावेशन से काफी दूर है।
प्रमुख प्रबंधकीय पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी बेहत कम
रिपोर्ट के अनुसार भले ही बोर्ड में महिलाओं की मौजूदगी वैधानिक नियमों के चलते बनी हुई है, लेकिन प्रमुख प्रबंधकीय पदों (केएमपी) पर उनकी हिस्सेदारी बेहद कम है। करीब 63.45 प्रतिशत कंपनियों में कोई महिला केएमपी नहीं है। प्रमुख प्रबंधकीय पद वे पद होते हैं जो किसी कंपनी के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पद आमतौर पर कंपनी के शीर्ष प्रबंधन स्तर पर होते हैं और महत्वपूर्ण निर्णय लेने और कंपनी के संचालन को दिशा देने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
उद्योग जगत में केवल 22% महिलाएं कार्यरत
इसके अलावा, भारतीय उद्योग जगत में केवल 22 प्रतिशत महिलाएं कार्यरत हैं। वहीं 2023-24 की आवधिक शहरी श्रम बल सर्वेक्षण के अनुसार यह आंकड़ा 28 प्रतिशत है यानी 6 प्रतिशत अंक का अंतर।
महिलाओं को संभालना होगा नेतृत्व
मार्चिंग शीप की संस्थापक और मैनेजिंग पार्टनर सोनिका आरोन ने कहा कि हमें सिर्फ कमरों में अधिक महिलाओं की जरूरत नहीं है। हमें उन्हें मेज पर भी देखना है, निर्णयों को प्रभावित करना है और रणनीति को आकार देना है। उन्होंने कहा कि वास्तविक समावेशन सिर्फ संख्या गिनने के बारे में नहीं हैं, बल्कि शक्ति के पुनर्वितरण का विषय है और बदलाव अभी भी अनुपस्थित है। समावेशन का अर्थ है पहुंच, अधिकार और जवाबदेही।