इंटरनेशनल ट्रांसजेंडर डे ऑफ विजिबिलिटी (TDoV) हर साल 31 मार्च को मनाया जाता है और इस साल 12वां  TDoV मनाया जाएगा। दुनिया भर में, यह दिन उन ट्रांसजेंडर, नॉन-बाइनरी/जेंडर नॉन-कन्फर्मिंग लोगों की ताकत और साहस को सेलिब्रेट करने के लिए समर्पित है जो ट्रांसजेंडर लोगों के अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ा रहे हैं और इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

International Transgender Day of Visibility की स्थापना मिशिगन 2009 में अमेरिका स्थित ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट Rachel Crandall (रशेल क्रैंडल) ने की थी। क्रैंडल को लगा कि ऐसा कोई दिन होना चाहिए जिस दिन ट्रांसजेंडर लोगों की उपलब्धियों और योगदान को सम्मानित किया जाए।

यह आइडिया हमें इस बारे में जागरूक करता है कि आज भी बहुत से ट्रांसजेंडर लोगों को, उनके अपने समुदायों द्वारा ही नजरअंदाज कर दिया जाता है और वो हर दिन भेदभाव या हिंसा के डर के साथ अपनी जिंदगी जीते हैं। यह दिन बताता है कि ट्रांसजेंडर होना सामान्य है। हालांकि उन्होंने कई बार इस सच को दिखाया है और साबित किया है कि एक ट्रांसजेंडर होना आसान नहीं है। Marching Sheep की फाउंडर सोनिका एरॉन कहती हैं कि हर कोई उनके खिलाफ हो रहे भेदभाव, हिंसा और दुर्व्यवहार का सामना नहीं करना पाता और विशेष तौर पर जब उनका परिवार भी उनके साथ न हो।

भारत में ट्रांसजेंडर समुदाय

ट्रांसजेंडर लोगों को घर और सार्वजनिक स्थानों पर लिंग हिंसा, उत्पीड़न और भेदभाव का कई रूपों में सामना करना पड़ता है। सोनिका एरॉन बताती हैं कि जून 2017 और मार्च 2018 के पीरियड के के दौरान, हमसफर ट्रस्ट द्वारा दिल्ली, मुंबई और बैंगलोर में किए गए “सिचुएशन एंड नीड्स असेसमेंट ऑफ ट्रांसजेंडर पीपल इन थ्री मेजर सिटीज” टाइटल के एक अध्ययन में पाया गया कि ट्रांसजेंडर समुदाय के करीब 59 प्रतिशत लोगों ने हिंसा का अनुभव किया है जिनमें से दिल्ली में 57 प्रतिशत, मुंबई में 55 प्रतिशत और बैंगलोर में 70 प्रतिशत हैं।

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इन तीनों शहरों में, जिन लोगों ने हिंसा या भेदभाव का सामना किया, उनमें से 22 प्रतिशत मामलों में उनके खुद के परिवार और रिश्तेदार अपराधी थे। जिसके बाद 21 प्रतिशत मामलों में आम जनता अपराधी थी।

थर्ड जेंडर को कब मिली पहचान?

भारतीय सेंसस ने जनगणना के दौरान कभी भी थर्ड जेंडर यानी कि ट्रांसजेंडर समुदाय को कभी मान्यता नहीं दी थी। फिर साल 2011 में, पहली बार ट्रांसजेंडर लोगों के डेटा को उनके रोजगार, साक्षरता और जाति से संबंधित डिटेल्स के साथ इकट्ठा किया गया था।

गणना के दौरान कुल 4.88 लाख लोगों को तीसरे लिंग की कैटेगरी में पाया गया जिसमें से 55 हजार लोग 0-6 के उम्र वर्ग में थे। थर्ड जेंडर की कुल संख्या में से 66 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों से थे। जनगणना के आंकड़ों पता चला कि इस समुदाय के लोंगों में सिर्फ 46% साक्षरता थी जबकि सामान्य आबादी में 76% साक्षरता थी।

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ट्रांसजेंडर पर्सन एक्ट (2019)

बाद में, भारत की संसद ने ट्रांसजेंडर पर्सन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) एक्ट, 2019 लागू किया जिसका मुख्य उद्देश्य उनके कल्याण, अधिकार और उनसे संबंधित अन्य मामलों की सुरक्षा करना था। इस विधेयक के अनुसार, एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति वह होता है जिसका लिंग उस व्यक्ति से मेल नहीं खाता है, जिसने उसे जन्म दिया है। ट्रांस-पुरुष और ट्रांस-महिलाएं, इंटरसेक्स वैरिएशन वाले व्यक्ति, जेंडर क्वीर और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति, जैसे कि ‘किन्नर’ और ‘हिजडा’ को इस बिल में शामिल किया गया है।

यह एक्ट क्या कहता है?

इस एक्ट में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं करेगा। इस बिल के अनुसार, कोई व्यक्ति या प्रतिष्ठान किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा, जिसमें निम्न संबंधों में सेवा से इनकार करना या अनुचित व्यवहार करना शामिल है:

  • शिक्षा
  • रोजगार या पेशा
  • स्वास्थ्य देखभाल
  • वस्तुओं और सेवाओं, सुविधाओं, या किसी अवसर तक पहुंच, जो आम जनता के लिए उपलब्ध हों
  • आवागमन का अधिकार
  • निवास करने, किराए पर देने या संपत्ति खरीदने का अधिकार,
  • सार्वजनिक या निजी कार्यालय बनाने या रखने का अवसर
  • एक सरकारी या निजी प्रतिष्ठान तक पहुंच

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इस एक्ट में रही क्या कमी?

1. 2019 अधिनियम में ट्रांसजेंडरों के खिलाफ यौन शोषण के लिए सजा का प्रावधान केवल “कम से कम छह महीने है जिसे दो साल तक बढ़ाया जा सकता है और इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है।” जबकि भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत महिलाओं के साथ बलात्कार के दोषी के लिए सजा का प्रावधान “कम से कम सात साल का है जिसे जीवन भर के लिए बढ़ाया जा सकता है।”

2. यह अधिनियम NALSA (National Legal Services Authority) के फैसले का भी उल्लंघन करता है क्योंकि यह ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा वर्ग मानते हुए शिक्षण संस्थानों और सार्वजनिक नियुक्तियों में प्रवेश लेने के लिए रिजर्वेशन देने में असफल रहता है।

3. इसके अलावा, 2019 अधिनियम, जिसे अन्य व्यक्तियों या प्रतिष्ठानों द्वारा ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने के लिए बनाया गया है, में ट्रांसजेंडर लोगों के खिलाफ हुआ भेदभाव के लिए किसी सजा का प्रावधान नहीं है। इसमें कहा गया है कि यदि एक ट्रांसजेंडर व्यक्ति का परिवार उसकी देखभाल करने में असमर्थ है, तो व्यक्ति को सक्षम न्यायालय से आदेश मिलने के बाद पुनर्वास केंद्र (Rehabilitation Centre) में रखा जा सकता है।

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सोनिका कहती हैं कि भारत को लैंगिक न्याय के लिए अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है ताकि ट्रांसजेंडर लोग अपने सार्वजनिक और निजी जीवन में भारत के किसी भी अन्य नागरिक की तरह ही स्वतंत्र और सशक्त हों। ऊपर बताए गए फैक्ट्स को ध्यान में रखते हुए भारतीय समाज में ट्रांसजेंडर लोगों को शामिल करने के लिए आवश्यक कानूनी सुधारों के साथ-साथ लैंगिक संवेदनशीलता पर काम करने की भी आवश्यकता है।

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